बालोद। जिले के डौंडी तहसील अंतर्गत ग्राम कुसुमकसा, चिपरा, भर्रीटोला, खलारी, गुजरा व गिधाली में फर्जी डॉक्टरों की बाढ़ सी आ गई है। वही जिले में ऐसे फर्जी डॉक्टरों पर निगरानी और इन पर कार्यवाही के लिए सरकार ने जिम्मेदारो को बिठाया हुआ है। लेकिन ऐसे नीम हकीमो पर कभी कभार ही दिखावे की कार्यवाही होती है। वही चर्चा है कि जिले के इन स्वास्थ्य अधिकारियों की फर्जी डॉक्टरों से मिलीभगत है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सीएमएचओ तथा बीएमओ को ही झोलाछाप डॉक्टरों को चिन्हित कर उनके विरुद्ध नियमानुसार कार्यवाही की जिम्मेदारी दी गई है लेकिन स्वास्थ्य विभाग के कुछ अधिकारी ही सरकारी नौकरी ग्रहण करने के समय प्रतिज्ञा को शायद भूल गए है। अब जो भी हो, इनको जिम्मेदारी का अहसास कौन दिलवाए। अखबारों को तो ये बच्चों की पोटी साफ करने का सामान समझते है। वही इनके विभाग ने आरटीआई पेल दो तो ये उसमें ही अपना थूक चिपका वापिस भेज देते है कि आपके द्वारा चाही गई जानकारी हमारे पास उपलब्ध नहीं है। अब सीधी सी बात है कि जानकारी उपलब्ध न होने की स्थिति में आरटीआई आवेदन को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 6(3) के तहत संबंधित विभाग को हस्तांतरित की जानी चाहिए। लेकिन मेडिकल की चीरफाड़ की डिग्री प्राप्त इन अधिकारियों को इनके विभाग ने आरटीआई कानून की जानकारी के लिए ट्रेनिंग ही नहीं दी है और अगर दी हुई है भी तो ये ट्रेनिंग कार्यशाला में हंसी – ठिठोली करने गए होंगे।
उपरोक्त लिखित लेख से पाठकों को यह भलीभांति यह समझ आता है कि झोलाछाप डॉक्टरों से जिले और ब्लॉक के जिम्मेदार सरकारी नुमाइंदों के गहरे करीबी संबंध है जिसमें दारू मुर्गा पार्टी से लेकर गांधी जी की तस्वीर छपे कागजों के बंडल भी शामिल है। सीधी सी बात है कि सरकार ने इन्हें जिस जिम्मेदारी के लिए कुर्सी पर बैठाया है वही ये उसी कुर्सी को घुन की तरह खाए जा रहे है।
आपको बता दें कि भारत में फर्जी चिकित्सकों के कारण कई मरीज अपनी जान से हाथ धो बैठते है वही कई गर्भवती महिलाएं भी अपने गर्भ में पल रहे बच्चे के साथ काल के गाल ने समां जाती है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं का कितना बुरा हाल है। सबसे शर्मनाक तो यह है कि ऐसे फर्जी चिकित्सक अपने अवैध क्लिनिक में मेडिकल स्टोर भी संचालित कर रहे है। अब इसका शर्मनाक पहलू यह है कि जो डॉक्टर खुद फर्जी है वो फार्मासिस्ट की डिग्री कहां से लाएगा? इसका इन्होंने अजब जुगाड़ बना रखा जिसने बड़े शहर के किसी मेडिकल स्टोर के फार्मासिस्ट के नाम से सुदूर गांव में मेडिकल स्टोर खोल लिया जाए जिसमें फार्मासिस्ट का नाम बोर्ड में पुतवा लिया जाए। अब इसमें भी गजब की सेटिंग है ऐसे तो इन मेडिकल स्टोर्स की जांच होती नहीं है लेकिन गलती से कोई शिकायत कर दे और किसी अखबार में समाचार प्रकाशित हो जाए तो ये जिम्मेदार अधिकारी जांच पर आने से पहले ही असली फार्मासिस्ट को सुचित कर मौके पर हाजिर करवा लेते है जिससे उनकी जांच में सब कुछ ठीक ठाक और नियम से प्रतीत हो।
मेडिकल लाइन में भ्रष्टाचार का ऐसा नमूना कि देखने वालों की आँखें फटी की फटी रह जाए। रही सही कसर बीएमओ, सीएमओ और खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग पूरी कर लेते है। जिनका महीना तथा सालाना लिफाफा बंधा होता है। अब ये गोपनीय है कि लिफाफे में क्या रखा होता है जो आप समझ सकते है।
जिले में मेडिकल माफियाओं की इस काली करतूत से लोगों का इस पेशे से विश्वास उठ सा गया है। वही स्वास्थ्य विभाग के उच्च अधिकारी भी इस मामले पर झांकते तक नहीं। कुछ सालों पहले ग्राम कुसुमकसा में शिव मंदिर के पास स्थित किसी फर्जी डॉक्टर की ओवर डोज दवाओं के चलते ग्राम गुजरा के एक परिवार को अपनी संतान खोनी पड़ी। वही अज्ञानता और गलत सलाह के कारण मामला पुलिस तक नहीं पहुंचने दिया गया। आज भी उस मां को अपने बच्चे की याद सताती है वही वो उस दिन को कोसती है जब वो अपने बच्चे को झोलाछाप डॉक्टर के पास इलाज के लिए ले गई थी।