कोरबा हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की अजीम शहादत को याद कर मुस्लिमों ने रविवार मोहर्रम के 10वें दिन योमे आसुरा की नमाज अदा कर अकीदत पेश की।

मोहर्रम की दसवीं तारीख के समापन पर शहर में सुबह से देर रात तक मोहर्रम का माहौल दिन भर हुई बारिश के बीच बना रहा। समाज के लोगों ने ताजिए और सवारियां निकालकर शांति व कौमी एकता का संदेश दिए। इस्लाम धर्म के लोगों ने इमाम हसन, हुसैन की शहादत को रविवार को याद किया। जिसके तहत शहर समेत उपनगरों में ताजिए निकालकर प्रदर्शन किया गया।

पूरे दिन होती रही बारिश के बावजूद ताजिएदारों ने अपनी-अपनी ताजिए को प्लास्टिक की पन्नी से ढंक कर शहर में निकाले। लोग अपनी सुविधा व समय के अनुसार ताजिए लेकर निकलते रहे। सभी दिशाओं से निकले ताजिए पुराना बस स्टैंड में जमा हुईं। जहां देर रात तक युवाओं के द्वारा शौर्य प्रदर्शन किया गया। जिसे देखने लोगों की भीड़ लगी रही।

यहां से ताजिए करबला में विसर्जन के लिए ले जाए गए। बता दें कि इस्लामिक मान्यताओं के आज से 1400 साल पहले कुफा की सरजमीं करबला पर यजिदियों के द्वारा पैगंबर मोहम्मद स.अ.व. के खानदान व इस्लाम को खत्म करने की सोची समझी रणनीति के तहत 50 हजार से अधिक के लश्कर ने महिला और बच्चों समेत 72 लोगों को तमाम तरह से प्रताड़ित करते हुए शहीद कर दिया था।

खिलाफत को जारी रखने के लिए कुफ्फारों ने पैगंबर के नवासे हजरत इमाम हुसैन को डेढ़ सौ से अधिक खत के जरिए यजीदियों के खिलाफ होने में अपना साथ देने की बात कहकर करबला बुलाया और वहां हजारों की तादाद में तैनात लश्कर ने पैगंबर मोहम्मद सअव के खानदान के साथ जंग छेड़ दी। जंग की जानकारी के बगैर कुफा पहुंचे हजरत इमाम हुसैन के रिश्तेदार और साथी करबला में यजीदियों के जुल्म का शिकार हुए और शहीद हो गए।

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